श्रीदुर्गासप्तशती पाठ माहात्म्य : ~
में अपने बहुत ही निम्न विचार आदि से यथाशक्ति मां की कृपा प्राप्त करने के लिए यह माहात्म्य को बता रहा हूं। कृपया मां जगदम्बा मुझे माफ़ करे।
श्री दुर्गा सप्तशती का जो मूल पाठ है,वह मार्कण्डेय पुराण के अन्तर्गत सावर्णिक मन्वंतर में देवीमाहात्म्य में देवी मां के 3 चरित्र के भाग स्वरुप 700 श्लोको के साथ महान वर्णन किया गया है।
पाठ क्रम :~ पाठ के पहले आचमन, प्राणायाम, संकल्प, शापोद्धार, देवी कवच, अर्गला और कीलक और देवी अथर्वशीर्ष तथा रात्रि सूक्त सप्तशती के विशेष न्यास आदि नवार्ण मंत्र जप कर 13 अध्यायो में दुर्गा मां का विशेष वर्णन है । बाद में सप्तशती के न्यास नवार्ण मंत्र जप देवी सूक्त और दुर्गा मां के तीन रहस्य है । उसके बाद शापोद्धार करके कुञ्जिका स्तोत्र पाठ करने का क्रम दिया गया है।
त्रयोदश अध्यायो का वर्णन :~ जिसमें 1 अध्याय में क्षत्रिय राजा सुरथ और वैश्य को ऋषि द्वारा देवीमाता के माहात्म्य को कहना, रात्रिसूक्त तथा मधु और कैटभ का वध, 2 अध्याय में देवताओं के तेज़ पुंज द्वारा देवीमाता का प्राकट्य और महिषासुर की सेना का संहार, 3 अध्याय में महिषासुर का वध, 4 में शक्रादय स्तुति, 5 में देवी सूक्त और शुंभ निशुंभ द्वारा देवी मां की और आकर्षित होकर दूत को भेजना, 6 में धूम्रलोचन का वध, 7 में चण्ड तथा मुण्ड का वध, 8 में रक्तबीज का वध, 9 में निशुम्भ वध, 10 में शुम्भ वध, 11 में देवी की स्तुति, 12 में देवी पाठ का माहात्म्य और 13 में वैश्य और सुरथ राजा को देवी का वरदान देना यह वर्णन विस्तार से है।
माहात्म्य कथन :~ इस सप्तशती पाठ को विधि विधान और श्रद्धा से करने से सर्वभय की मुक्ति, महामारी आदि सर्व रोगों से मुक्ति, सभी बाधा से मुक्ति, निर्भयता, धन, धान्य, पुत्रादि से संपन्नता, सर्वशत्रु से मुक्ति, ग्रहजन्यपीड़ा से मुक्ति, मनुष्यो में संगठन फूट होने पर मित्रता की प्राप्ति, सभी अशुभ तत्वों को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है।
कितना भी कहो मां की कृपा के गुणगान अपरंपार है, उनके गुणों का वर्णन करने की शक्ति भी वहीं देती है ।
सभी मातृशक्ति को मेरा प्रणाम ।
जय माताजी।।